कश्*मीर को न भूलो शेख आयमन अल-जवाहरी
कश्*मीर को न भूलो
शेख आयमन अल-जवाहरी
কাশ্মীরকে ভুলে যেও না!
শায়খ আইমান আল-জাওয়াহিরী হাফিজাহুল্লাহ এর বার্তার
হিন্দী অনুবাদ
প্রকাশনায় ‘আল-ফিরদাউস’ মিডিয়া ফাউন্ডেশন
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शेख आयमन अल-जवाहरी
कश्मीर को न भूलो
आल-फिरदाउस मिडिया
कश्मीर को न भूलो शेख अयमान अल-जवाहरी
कश्मीर को न भूलो
शेख आयमन अल-जवाहरी
अल सहाब मीडिया
अल्लाह के नाम पर की गईं सभी प्रार्थनाएं एकमात्र उस अल्लाह के लिए हैं और अल्लाह के पैगम्बर, उनके परिवार, साथियों तथा उन सब को, जो उसके बताए मार्ग पर चलते हैं, अल्लाह का अमन और नूर हासिल हो।
मेरे प्यारे मुस्लिम भाइयों और बहनों,
अस्सलामु अलैकुम वा रहमतुल्लाही वा बर्कतुल्लाहू
मैं आज आप लोगों के साथ एक त्रासदी पर चर्चा करना चाहूँगा, जो पिछले सत्तर सालों से और ज्यादा बढ़ती चली जा रही है: वह है, कश्मीर के मुस्लिमों की दुर्दशा। यह बात इस त्रासदी को और ज्यादा डरावना बना देती है कि कश्मीर के मुस्लिम, एक तरफ हिंदू क्रूरता और दूसरी तरफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों की दगाबाजी और साजिशों के बीच फंसे हुए हैं।
बेशुमार तकलीफें उन्हें दी गईं और उन्होंने सहा है। अत: हमें उनके साथ हमदर्दी होनी ही चाहिए और हम उनके लिए हमदर्दी जता भी रहे हैं और उन तक हरसंभव मदद पहुँचाएंगे, क्योंकि उनका दर्द हमारा दर्द है, उनके जख्म हमारे जख्म हैं, उनके खिलाफ आक्रामकता हमारे खिलाफ आक्रामकता है और उनकी पवित्रता को भंग करना हमारी पवित्रता को भंग करना है। कश्मीर हमारे उस दिल का नासूर है, जो ऐसे कई लहूलुहान जख्मों के दर्द से आहत है।
हमें फिर से अपना यह नजरिया दोहरा देना चाहिए कि कश्मीर के खिलाफ आक्रामकता पूरे उम्मह के खिलाफ आक्रामकता है, ठीक वैसे ही, जैसे मुस्लिम उम्मह के किसी भी हिस्से के खिलाफ आक्रामकता कश्मीर के खिलाफ भी आक्रामकता है। हम अपने आप में एक और संगठित उम्मह है: सरहदें या देशों के आपसी मतभेद हमें अलग नहीं कर सकते।
अल्लाह कहते हैं, बेशक, तुम्हारा यह उम्मह अकेला उम्मह है और मैं ही तुम्हारा खुदा हूँ, इसलिए मेरी इबादत करो। पैगम्बर कहते हैं, ”मुझमें भरोसा रखने वालों के आपसी संबंधों की कहानियां एक दीवार की तरह हैं, जिसका एक हिस्सा दूसरे हिस्से को मजबूत बनाता है (और वह इसे दिखाने के लिए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ देता है)”। कहते हैं कि पैगम्बर ने कहा था कि सभी मुस्लिमों के खून की पवित्रता एक समान है। इनमें से जो सबसे नीचे हो, उसका वचन भी सभी के लिए बाध्यकारी है और जो इनमें सबसे दूर भी होगा, वह भी इनमें से प्रत्येक की पुकार का उत्तर देगा, इस प्रकार ये अपने दुश्मनों के खिलाफ एक हाथ की तरह हैं। पैगम्बर कहते हैं, ”आपस में मुहब्बत, रहम और समर्थन में इस्लाम में विश्वास रखने वाले ये लोग एक शरीर की तरह है। यदि शरीर का कोई एक हिस्सा दुखता है, तो उसका आभास पूरे शरीर को होता है।”
इसलिए अरब मुजाहिदीन अफगानिस्तान से रूस को खदेड़ने के बाद कश्मीर में भी घुसना चाहता था। लेकिन पाकिस्तान की सरकार और फौजें- अमेरीका के पिट्ठू- उनके इंतजार में बिछे हुए थे। कश्मीरी मुजाहिदीन के बारे में पाकिस्तानी हुकूमत और उनकी बेईमान फौज की नीतियां उनकी उस पुरानी नीति से अलग नहीं है, जो पहले उन्होंने रूसियों को बाहर निकाल देने के बाद अरब मुजाहिदीन के लिए अपनाई थीं और बाद में इस्लामिक अमीरात और इसके मुजाहिदीन तथा मुहाजिरों के लिए अपनाई थी।
सारी पाकिस्तानी फौज और सरकार अपने खास सियासी मंसूबों को पूरा करने के लिए मुजाहिदीन का शोषण करने की चाहत रखती हैं, ताकि बाद में उन्हें बेकार किया जा सके या उन पर मुकदमा चलाया जा सके। आखिर में मुट्ठी भर गद्दार ही फायदे में रहेंगे, जिनकी जेबें रिश्वत और गैर कानूनी दौलत से भरी होंगी।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने जेहादियों को इस्लामिक अमीरात और उसके मुजाहिदीन के बारे में खासी जानकारी दी थी। इसने अल कायदा और इस्लामिक अमीरात के मुजाहिदीन को गिरफ्तार कर लिया, उन्हें जेल में यातनाएं दी गईं और उन्हें अमरीकियों को सौंप दिया गया। हकीकत में, इनमें से बहुत से लोग इनकी एजेंसियों के खुफिया जेलों में मार दिए गए।
अमेरिका के लोगों को यही एजेंसियॉं सुरक्षित घर, व्यक्तिगत गोपनीय कारावास, सामान लाने व ले जाने के लिए रास्ता और सहायता तथा अफगानिस्तान जाने के लिए सड़क मार्ग मुहैया कराती हैं, जिसके बदले में उन्हें रिश्वत दी जाती है।
इन एजेंसियों के लिए इस्लामिक आंदोलन को बल प्रदान करना, मुसलमानों की रक्षा करना या अपने क्षेत्र को स्वतंत्र कराना असंभव है। भारत के साथ उनका मतभेद अनिवार्यत: अमरीकी आसूचना द्वारा नियंत्रित सीमा पर धर्मनिरपेक्ष प्रतिद्वन्द्विता ही है।
अमरीकी और पाकिस्तानी आसूचना के बीच तथाकथित रूप से मतभेद ठीक उसी प्रकार के हैं, जिस प्रकार के मतभेद एक मामूली चोर और गैंग के मुखिया के बीच हुआ करते हैं।
गैंग का मुखिया मामूली चोर से कहता है: मैंने तुम्हें बहुत दिया, लेकिन तुमने बदले में बहुत कम किया, इस पर मामूली चोर तुरंत कहता है- आपने मुझे बहुत कम दिया, लेकिन मैंने आपके लिए बहुत अधिक किया।
फिर भी, मामूली चोर की निष्ठा, गैंग के मालिक के प्रति ही रहती है, और वो जब भी काम करेगा, उन्हीं के लिए करेगा।
पाकिस्तानी आसूचना एजेंसी अमरीका से शिकायत करती है- आपने भारत और उनके एजेंट को हमसे अधिक वरीयता देकर अपनी सीमा का उल्लंघन किया है। बदले में अमेरिकी, पाकिस्तानी आसूचना को बताते हैं- हमने मुसलमानों को मारने के लिए दोनों, सरकारी और व्यक्तिगत रूपों में आपको रिश्वत दिए हैं, लेकिन हमें और हमारे एजेंटो को मारने वालों के प्रति आप अंधे बने हुए हैं।
फिर भी, दोनों के बीच साझा संबंध फल-फूल रहा है। चोरों के बीच यह मैत्री, अनिवार्य रूप से मुसलमानों के खून, उनके शरिया और उनकी पवित्रता का सौदा है।
यहॉं मैं एक महत्वपूर्ण बिंदु को स्पष्ट करना चाहता हूँ। शरिया के अनुसार, मुसलमानों और मुजाहिद्दीनों के लिए, इस्लाम के दुश्मनों के मतभेद और प्रतिद्वन्द्विता के बीच अपना फायदा करना स्वीकार्य है, चाहे वह बड़े अपराधी ओर मामूली किराए के लोग के बीच हो या पश्चिमी और पूर्वी ब्लॉक के बीच की प्रतिद्वन्द्विता ही क्यों न हो।
फिर भी, जो स्पष्ट रूप से शरिया के विरूद्ध है और जो अनिवार्यत: अवश्यंभावी विपदा की ओर संकेत कर रहा है- वह यह है कि हम स्वयं को अपने भेद, अपना भाग्य और अपने निर्णय इन चोरों को सौंप रहे हैं, जो अन्तरराष्ट्रीय अपराधियों के चाटुकार हैं। यदि पाकिस्तानी सरकार और सेना यह दावा करती है कि वे अमेरीकी नीतियों के विरूद्ध काम कर रहे हैं और वे स्वतंत्र प्रभुसत्ता संपन्न राज्य पर शासन कर रहे हैं, तो मैं उनसे दो आसान प्रश्न पूछना चाहता हूँ-
क्या पाकिस्तानी सरकार या सेना अमेरिकी ड्रोन को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र पर मंडराने से रोक सकती है?
क्या पाकिस्तानी सरकार या सेना, अफगानिस्तान में अमेरीकी सेना को रसद पहुँचाने के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र से अमेरिकी साजोसामान से लदे वाहनों के गुजरने पर रोक लगा सकती है?
कश्मीर को आजाद कराने के लिए पाकिस्तान की सरकार या सेना पर विश्वास नहीं किया जा सकता। उनकी असफलता, हार, भ्रष्टाचार और धोखे का इतिहास, इस सच के गवाह हैं। अधिक से अधिक वे यही पाना चाहते हैं कि पिछले 70 साल से वे पाकिस्तान में चल रहे भ्रष्टाचार को कश्मीर में स्थानान्तरित कर दें ……. राजनैतिक, नैतिक, वित्तीय, वैधानिक भ्रष्टाचार का समेकित पैकेज।
जहॉं तक मुसलमानों की रक्षा की बात है, पाकिस्तानी सेना का इतिहास बहुत काला रहा है। वो सेना, जिसने अफगानिस्तान को तबाह करने के लिए अमरीका की सहायता की। वो सेना, जिसने बंगाल, भारत को सौंप दिया। वो सेना, जिसने बलूचिस्तान में मुसलमानों का नरसंहार किया और वजीरिस्तान और स्वॉत के नागरिकों को उनके घर से निष्कासित करने वाली सेना पर मुसलमानों की सुरक्षा नहीं सौंपी जा सकती।
इसलिए, कश्मीर में जिहाद को अल्लाह के लिए जिहाद, न कि अंतरराष्ट्रीय अपराधियों के लिए जिहाद में बदलने के लिए पहला आवश्यक उपाय कश्मीरी जिहाद को पाकिस्तानी आसूचना एजेंसियों के चुंगल से मुक्त कराना है।
इस मुक्ति को प्राप्त करने के उपरांत, मुजाहिदीनों को स्वतंत्र निर्णय लेकर, जो शरीया के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होंगे, अपने जिहाद की योजना तैयार करनी चाहिए।
मेरा विचार है कि कश्मीर में मुजाहिदीनों को कम से कम इस अवस्था में एक मत से भारतीय सेना और सरकार पर ताबड़तोड हमले करने पर फोकस करना चाहिए, ताकि भारतीय सेना का खून बहाया जा सके और भारत को जानमाल की लगातार क्षति उठानी पड़े। ऐसा करते समय मुजाहिदीनों को धैर्य के साथ अध्यवसाय करना चाहिए। उन्हें संपूर्ण मुस्लिम दुनिया के अपने मुसलमान भाइयों के साथ संप्रेषण के अधिक सशक्त माध्यम विकसित करने की भी अवश्यकता है। कश्मीर के मुजाहिदीनों को जिहाद के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में जिहादी जागरूकता से लाभ उठाना चाहिए। उन्हें दुनियां के विभिन्न भागों में मुजाहिदीनों के साथ संपर्क करना चाहिए तथा सुनिश्चित करना चाहिए कि आपकी आवाज उन तक पहुँचे, ताकि कश्मीर के मामले को उम्मह के बीच प्रसिद्धि के स्तर तक उठाया जाए और इसमें हुई नवीनतम प्रगति को लगातार प्रकाश में लाया जाता रहे। वास्तव में पाकिस्तानी आसूचना एजेंसियाँ- पाकिस्तान में अमेरिका का प्राथमिक सहायक-मुजाहिदीनों को ऐसा करने से रोकने का प्रयास करेंगी, ताकि वे राजनैतिक सौदेबाजी के उपाय के रूप में हमेशा उनके नियंत्रण में रहें।
कश्मीर, पाकिस्तान और दुनियां भर के मुजाहिदीनों को अपने जिहाद को शरीयत के दिशानिर्देशों से संबंद्ध जिहाद बनाना चाहिए। उन्हें मुसलमानों की पवित्रता को कभी भंग नहीं करना चाहिए। उन्हें उन गलतियों को दूर करना चाहिए, जो वे कर चुके हैं।
मुस्लिम के रक्त और पवित्रताओं के मसले को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी का पिता धर्मत्यागी है, इसलिए पुत्र को सजा देना संभव नहीं, अथवा केवल संदेह या कमजोर साक्ष्य के आधार पर निर्दोष लोगों को मारना संभव नहीं है। न ही मस्जिद, बाजार और मुसलमानों के एकत्र होने के स्थानों पर बम-विस्फोट किया जाना चाहिए। ये अपराध मुजाहिदीनों की छवि को क्षति पहुँचाते हैं तथा मुस्लिम लोगों का ध्यान महत्वपूर्ण मामलों से भटकाते हैं, उन्हें सरकारी तथा पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित मीडिया के प्रचार अभियानों के लिए संबंधित ऑडियेन्श में बदल देते हैं। पाकिस्तान की सेना, इसकी आसूचना एजेंसियां तथा इसके नियंत्रणाधीन मीडिया जिहाद को विकृत करने के लिए इन गलत कार्यों के जरिये शोषण करते हैं तथा लाखों मुसलमानों के विरूद्ध किए गए अनगिनत अपमानों और अपराधों को न्यायसंगत ठहराते हैं। शरियत के दिशानिर्देशों के न होने से, मुजाहिदीनों को हत्यारों तथा फिरौती और ब्लैकमेलिंग हेतु अपहरण में लगे समूहों में बदल दिया है। दुर्भाग्यवश, इस प्रकार के कुछ दोष मुजाहिदीनों के रैंकों में समा चुके हैं तथा अच्छे को समर्थन देकर और बुरे के निषेध के माध्यम से इस स्थिति का सामना करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
यह दायित्व किसी अन्य व्यक्ति से पहले सम्माननीय विद्वानों पर लागू होता है। यह उनका कर्तव्य है कि वे उम्मह को सच बताएं, भ्रष्ट लोगों द्वारा उठाए गए संदेहों को दूर करें। उन्हें मुस्लिम जनता को समझाना चाहिए कि सत्तर वर्षों के बाद भी, शरीयत, कानूनी और व्यावसायिक क्षेत्र डोमेन से पूरी तरह बाहर ही रही है तथा पाकिस्तान का संविधान तथा इसकी विधिक प्रणाली शरीयत के साथ स्पष्ट मतभेदों से भरी हुई है।
सम्मानित विद्वानों। उम्मह को यह उपदेश देना आपका कर्तव्य है कि आज अफगानिस्तान में अमेरिका के विरूद्ध जिहाद एक व्यक्तिगत दायित्व (फर्द अयन) है, जैसे तीन दशक पूर्व रूस के विरूद्ध जिहाद था। और यदि मुजाहिदीन अथवा मुजाहिदीन के साथ जुड़े हुए लोग कुछ गलती या अपराध करते हैं, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान में फौज और सुरक्षा एजेंसियों ने लाखों मुस्लिमों के खिलाफ हजारों बुरे अपराधों को अंजाम दिया है।
सम्मानित विद्वानों। उम्मह को बताओ कि जो लोग मुस्लिमों के खिलाफ नास्तिकों की सहायता करते हैं, वे उनकी तरह ही खुद भी नास्तिक होते हैं। अल्लाह कहते हैं, ‘जो संगठन के रूप में उसे चुनता है, वह भी उन्ही में से एक है।’
लोगों को समझाओ कि इस्लाम, केवल जिहाद और दावाह से ही विजयी होगा न कि अमान्य प्रजातांत्रिक खेलों द्वारा, जो केवल शरीया की शिक्षा से उम्मह की दूरी बढ़ाते हैं।
लोगों को स्पष्ट कर दो कि हम एक ही उम्मह हैं और हमारा जिहाद एक जिहाद है। और यह कि, अफगानिस्तान में इस्लामिक एमिरेट्स की सहायता करना अफगानिस्तान के लोगों और उनके समीप रहने वालों तथा उनके बाद सभी मुसलमानों का वैयक्तिक दायित्व है, जब तक कि अमेरिका, इसके सहयोगियों और एजेंटों को हराने के लिए पर्याप्त ताकत न प्राप्त हो जाए।
आपको स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि कश्मीर, फिलीपींस, चेचेन्या, मध्य एशिया, इराक, सीरिया, अरब प्रायद्वीप, सोमालिया, इस्लामिक मगरेब तथा तुर्किस्तान में जिहाद का समर्थन करना सभी मुसलमानों का एक वैयक्तिक दायित्व है, जब तक कि मुस्लिम प्रदेशों से नास्तिक दखलदारों को निष्कासित करने के लिए पर्याप्त शक्ति प्राप्त न हो जाए। कश्मीर में रहने वाले हमारे लोगों के लिए अल्लाह इस तथ्य का गवाह है कि हमने तुम्हें नहीं भुलाया और यह कि हमारे पास मौजूद हर वस्तु के साथ हम तुम्हारे साथ खड़े हैं, चाहे वह सब हम दुआओं में ही क्यों न रखते हों।
पैगम्बर द्वारा आपको दी गई खुशखबरी पर जश्न मनाओ (वह शांति में रहे)। अल्लाह नरक की आग से मेरे उम्मह के दो समूहों की रक्षा की है। उस समूह की, जो अल हिन्द (भारतीय उप महाद्वीप) में विजय दर्ज करता है और उस समूह की, जो ईसा (जीसस) मरियम के बेटे के साथ होगा।
हमारी अंतिम प्रार्थना यह है कि सभी प्रार्थनाएं अल्लाह के लिए हैं, जो दुनिया का मालिक है। हमारे मालिक मुहम्मद, उसके परिवार और साथियों के ऊपर अल्लाह की कृपा और शांति सदा बनी रहे। अल्लाह आपको शांति, दया और आशीर्वाद प्रदान करे।
আস্-সালামুআলাইকুম।
মুহতারাম,
আলফিরদাউস নিউজ বুলেটিন আগস্ট ২য় ও ৪র্থ সপ্তাহের নিউজ পেলামনা। ইউটিউব ও পেজবুক পেজ এখন খুজে পাইনা কেন? অন্যকোন নামে থাকলে লিংক জানাবেন।
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